NCERT Solutions for Class 12 Humanities Hindi Chapter 2 जूझ आनंद यादव are provided here with simple step-by-step explanations. These solutions for जूझ आनंद यादव are extremely popular among Class 12 Humanities students for Hindi जूझ आनंद यादव Solutions come handy for quickly completing your homework and preparing for exams. All questions and answers from the NCERT Book of Class 12 Humanities Hindi Chapter 2 are provided here for you for free. You will also love the ad-free experience on Meritnation’s NCERT Solutions. All NCERT Solutions for class Class 12 Humanities Hindi are prepared by experts and are 100% accurate.

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Question 1:

'जूझ' शीर्षक के औचित्य पर विचार करते हुए यह स्पष्ट करें कि क्या यह शीर्षक कथा नायक की किसी केंद्रीय चारित्रिक विशेषता को उजागर करता है?

Answer:

'जूझ' शीर्षक असलियत में नायक के संघर्ष को चित्रित करता है। शीर्षक हर कहानी का मुख्य बिन्दु है। इससे ही कथा तथा उसकी विषय वस्तु के बारे में जानकारी मिलती है। शीर्षक को पढ़कर ही आपको अंदाज़ा हो जाता है कि कथा किस ओर लेकर जाएगी। कथा पढ़ने के बाद शीर्षक औचित्यपूर्ण जान पड़ता है। नायक गाँव में रहता है। एक किसान परिवार की सोच तथा उनकी मान्यता इस कहानी में बड़ी अच्छी तरह से जान पड़ती है। कहानी का नायक पढ़ाई करना चाहता है। उसका पिता शिक्षा के महत्व से अनजाना है। पिता के अनुसार एक किसान को खेती के कामों से ही रोज़ी-रोटी मिलती है। अतः शिक्षा को वह महत्व नहीं देता। नायक किस तरह संघर्ष करता है और अपनी शिक्षा के दरवाजे खोलता है। वह दरवाज़े ही नहीं खोलता बल्कि उसे जो अवसर मिलता है, उसका भरपूर लाभ उठाता है। उसका संघर्ष उसे जल्द ही उसके लक्ष्य तक पहुँचा देता है। नायक यह चारित्रिक विशेषता है। कहानी का केन्द्र बिन्दु उसका संघर्ष ही है। जहाँ वह पारिवारिक, सामाजिक, आर्थिक, व्यक्तिगत स्तर पर स्वयं के लिए लड़ता है और सफल होकर दिखाता है।

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Question 2:

स्वयं कविता रच लेने का आत्मविश्वास लेखक के मन में कैसे पैदा हुआ?

Answer:

लेखक की पाठशाला में मराठी के अध्यापक सौंदलगेकर से संपर्क होता है। वह स्वयं एक अच्छे कवि और रसिक व्यक्ति थे। उनके कविता पाठन के तरीके ने लेखक को प्रभावित किया। लेखक आरंभ में कविता का उच्चारण उनके अंदाज़ में कहता है। धीरे-धीेरे वह कविताओं को दूसरे रूप में गाना आरंभ करता है। इस तरह जब वह प्रवीणता हासिल कर लेता है, तो वह स्वयं कविता रचना आरंभ कर देता है। पहले वह तुकबंदी करता है परन्तु अभ्यास करने पर वह स्वयं एक अच्छा कवि बन जाता है। आरंभ में सौंदलगेकर उसकी प्रतिभा को निखारने में उसकी सहायता करते हैं। वह नायक को उस समय के कवियों के बारे में बताते हैं। जिससे लेखक के मन में कवियों के प्रति संदेह समाप्त हो जाता है और उसका आत्मविश्वास बढ़ता है। इस प्रकार उसमें स्वयं कविता रच लेने का आत्मविश्वास पैदा होता है।

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Question 3:

श्री सौंदलगेकर के अध्यापन की उन विशेषताओं को रेखांकित करें जिन्होंने कविताओं के प्रति लेखक के मन में रुचि जगाई।

Answer:

श्री सौंदलगेकर के अध्यापन की विशेषताएँ इस प्रकार हैं-
(क) वे जिस विषय को पढ़ाते थे ,उसमें स्वयं बहुत रुचि रखते थे। अतः पढ़ाते-पढ़ाते स्वयं उसमें रम जाते थे।
(ख) उनका कविता पाठन का तरीका बहुत प्रभावशाली था। उनके इसी तरीके से लेखक प्रभावित हुआ था।
(ग) वे स्वयं बहुत सुरीले गले के मालिक थे। छंदों का ज्ञान था। ये दोनों गुण उनके कविता पाठन में जान डाल देते थे।
(घ) उन्हें अंग्रेज़ी तथा मराठी भाषा के कवियों की कविताएँ कंठस्थ थीं।
(ङ) पहले वे स्वयं गाते थे तथा बाद में छात्रों को याद करवाते थे। प्रयास करते थे कि बच्चों की रुचि उसमें हो।
(च) वे स्वयं अच्छी कविताओं की रचना करते थे। बच्चों से अपने इस ज्ञान को बाँटते थे।
उनकी ये सब विशेषताएँ थीं, जिन्होंने उनके अध्यापन को बहुत अच्छा बना दिया था।

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Question 4:

कविता के प्रति लगाव से पहले और उसके बाद अकेलेपन के प्रति लेखक की धारण में क्या बदलाव आया?

Answer:

पहले कवि को पिता के साथ काम करने में मन नहीं लगता था। श्री सौंदलगेकर के संपर्क में आने के बाद उसकी रुचि कविता के प्रति बढ़ने लगी। धीरे-धीरे यह रुचि लगाव में बदलने लगी। आगे चलकर नायक को जो अकेलापन पहले खलता था, अच्छा लगने लगा। अब उसे अकेलेपन के महत्व का पता चला। उसने अब इस अकेलेपन का फायदा उठाना आरंभ कर दिया और प्रयास करने लगा कि वह अधिक-से-अधिक अकेला रहे। इस समय वह कविता उच्चारण करने लगा। वह अभिनय भी करता। इस तरह वह स्वतंत्रता का अनुभव करता। अभ्यास के बाद जब उसे इसमें सफलता मिलने लगी, तो वह अपने ढंग से कविता के उच्चारण में बदलाव करने लगा। अब वह एक कविता को विभिन्न तरीके से गा सकता था। उसने इसी अकेलेपन में कविताएँ भी रचीं।

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Question 5:

आपके ख्याल से पढ़ाई-लिखाई के संबंध में लेखक और दत्ता जी राव का रवैया सही था या लेखक के पिता का? तर्क सहित उत्तरे दें।

Answer:

हमारे ख्याल से पढ़ाई-लिखाई के संबंध में लेखक और दत्ता जी राव का रवैया सही था। पढ़ाई-लिखाई जीवन में बहुत काम आती है। पढ़ाई-लिखाई है, जिसने लोगों को जीविका के साधन के साथ-साथ एक बेहतर जिंदगी भी दी है। पढ़ाई-लिखाई मनुष्य की सोच को विकसित करती है। उसे किसी विषय पर जागरूक बनाती है। लेखक बचपन से ही पढ़ाई-लिखाई के महत्व को जानता था। पिताजी का खेतों में दिन-दिन भर काम करना और उसके बाद भी घर के लिए पूरा नहीं हो पाता था। लेखक सोचता था कि यदि वह पढ़ाई-लिखाई कर लेगा, तो किसी अच्छी जगह नौकरी करने लगेगा। आगे चलकर व्यापार आदि में भी भविष्य आजमा पाएगा। अतः वह पढ़ाई-लिखाई पर ज़ोर डालता था। उसका पिता इसलिए विकास नहीं कर पाया क्योंकि वह अनपढ़ था। अशिक्षा के कारण ही वह शोषण झेल रहा था। यदि वह पढ़ा-लिखा किसान होता, तो उसकी दशा ऐसी न होती। अतः लेखक और दत्ता जी राव का पढ़ाई-लिखाई के प्रति रवैया बिलकुल सही था।

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Question 6:

दत्ता जी राव से पिता का दबाव डलवाने के लिए लेखक और उसकी माँ को एक झूठ का सहारा लेना पड़ा। यदि झूठ का सहारा न लेना पड़ता तो आगे का घटनाक्रम क्या होता? अनुमान लगाएँ।

Answer:

दत्ता जी राव से पिता पर दबाव डलवाने के लिए लेखक और उसकी माँ ने झूठ बोला था। यदि लेखक झूठ का सहारा न लेता, तो स्थिति बिलकुल उलट होती। हमारे सामने यह कहानी नहीं होती। लेखक हमारे सामने नहीं होता। लेखक अपने पिता के साथ खेतों में काम करते हुए अपना सारा जीवन व्यतीत कर देता। उसकी प्रतिभा व्यर्थ हो जाती और वह अनपढ़ ही रह जाता। उसके तथा उसकी माँ के एक झूठ ने उसके जीवन की दिशा ही बदल दी। यह दिशा उसके लिए उज्जवल भविष्य लेकर आई। नहीं तो चुप रहने पर उसका जीवन खेत, नहर, गाय-भैंसों के गोबर के मध्य ही बीत जाता।



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