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Question 1:
सिंधु-सभ्यता साधन-संपन्न थी, पर उसमें भव्यता का आडंबर नहीं था। कैसे?
Answer:
सिंधु-सभ्यता साधन-संपन्न थी। इसके प्रमाण मुअनजो-दड़ो में चारों ओर बिखरे हुए हैं। शहर का व्यवस्थित रूप, चारों ओर मकान की सुविधा संपन्न बनावट, पानी की निकासी की उत्तम व्यवस्था, सड़कों का आकार तथा बनावट, विशाल स्नानागार, कुओं की व्यवस्था, तांबे का प्रयोग, पत्थरों का प्रयोग, कपड़ों पर रंगाई, पूजास्थल, अन्य स्थानों से व्यापार संबंध, खेती के सबूत इत्यादि बातें इसकी भव्यता की कहानी कह जाते हैं। वहाँ पर किसी प्रकार के राजप्रसाद दिखाई नहीं देते हैं। न ही ऐसे प्रमाण मिलते हैं, जिससे वहाँ किसी बड़े मंदिर का पता चले। वहाँ पर विकसित सभ्यता के चिह्न मिलते हैं। जहाँ पर सब साधन विद्यमान थे। इन्हीं सब पर दृष्टि डालने के बाद कहा गया है कि सिंधु-सभ्यता साधन-संपन्न थी, पर उसमें भव्यता का आडंबर नहीं था।
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Question 2:
'सिंधु-सभ्यता की खूबी उसका सौंदर्य-बोध है जो राज-पोषित या धर्म-पोषित न होकर समाज-पोषित था।' ऐसा क्यों कहा गया?
Answer:
इस सभ्यता को लेखक ने साधन-संपन्न माना है। इस सभ्यता ने भव्यता को महत्व नहीं दिया है। यह कलात्मकता को महत्व देती है। अतः हम कह सकते हैं कि यहाँ के लोग बोध कला में रुचि रखते थे। यहाँ की नगर व्यवस्था, पत्थर तथा धातु से बनी मूर्तियाँ, पशु-पक्षियों की आकृतियाँ, सुंदर मुहरें, खिलौने, बालों को सवारने का कंघा, गहने इत्यादि इसके सौंदर्य बोध का प्रमाण देते हैं। यहाँ पर आपको राजचिह्न या धर्म से संबंधित चिह्न नहीं मिलते हैं। यदि मिलते होते तो इसकी स्थिति बिलकुल अलग होती। यहाँ आम जनता से जुड़े चिह्न अधिक बिखरे हुए हैं। जिनका सौंदर्य बोध इसी कारण विद्यमान है। यह सभ्यता हर तरह से समाज-पोषित सभ्यता को दर्शाती है। यहाँ पर ताकत के चिह्न नहीं मिलते। यह सभ्यता आपसी समझ के कारण लंबे समय तक चली। यह आडंबर रहित है।
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Question 3:
पुरातत्त्व के किन चिह्नों के आधार पर आप यह कह सकते हैं कि- '' सिंधु-सभ्यता ताकत से शासित होने की अपेक्षा समझ से अनुशासित सभ्यता थी।''
Answer:
मुअनजो-दड़ो ऐसी सभ्यता है, जो सबसे विकसित सभ्यता कही जाती है। ऐसा कहने के पीछे इस नगर की व्यवस्था है। इस नगर की व्यवस्था बेजोड़ थी। यह अब तक मिली सबसे विकसित सभ्यता इसी कारण से कही जाती है। यहाँ पर पानी के निकासन की व्यवस्था उत्तम थी, स्नानागार तथा सामूहिक पूजा स्थल बहुत ही उत्तम शैली के बने हैं, घरों की व्यवस्था भी अद्भुत है, सड़कें चौड़ी तथा पक्की थीं, उसके दोनों ओर नालियाँ बनी हुई थीं, घरों तथा नगर के निर्माण में पक्की ईंटों का प्रयोग किया गया था, आप्रकृतिक टिले बनाए गए थे ताकि नगर में सिंधु के पानी से सुरक्षित रखा जा सके, खेती की जाती थी, अन्न को संभालकर रखा जाता था। इन सब बातों के बावजूद यहाँ पर राजप्रसाद तथा मंदिर का सर्वथा अभाव देखा गया है। यहाँ पर खुदाई के दौरान, गहने, खिलौने, बर्तन, कंघी, अनाज के बीज इत्यादि सब पाए गए हैं लेकिन युद्ध में प्रयोग होने वाले हथियार नहीं पाए गए। जो इस बात का प्रमाण है कि पुरातत्त्व सिंधु-सभ्यता ताकत से शासित होने की अपेक्षा समझ से अनुशासित सभ्यता थी।
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Question 4:
'यह सच है कि यहाँ किसी आँगन की टूटी-फूटी सीढ़ियाँ अब आप को कहीं नहीं ले जातीं; वे आकाश की तरफ़ अधूरी रह जाती हैं। लेकिन उन अधूरे पायदानों पर खड़े होकर अनुभव किया जा सकता है कि आप दुनिया की छत पर हैं, वहाँ से आप इतिहास को नहीं उस के पार झाँक रहे हैं।' इस कथन के पीछे लेखक का क्या आशय है?
Answer:
लेखक को मुअनजो-दड़ो में चारों ओर इस सभ्यता के प्रमाण दिखाई देते हैं। इससे लेखक हमें बताता है कि इतिहास भी कभी वर्तमान था। यह वर्तमान भी कभी हमारी तरह सजीव और विकसित था। यहाँ जितने भी प्रमाण मिले हैं या बिखरे पड़े हैं, वे बेशक ऐतिहासिक हो सकते हैं। लेकिन इससे आगे भी बहुत कुछ है, जो जानने योग्य है। लेखक बताना चाहता है कि हम इन प्रमाणों के माध्यम से उस वर्तमान को आज के वर्तमान में जी पा रहे हैं। वह वर्तमान हमारी आँखों के आगे साकार हो जाता है। वह वहाँ की दीवारों, सड़कों, घर, घर के देहरी में जाकर वह सब महसूस करने लग जाता है। जहाँ वह इतिहास के पार झाँकना आरंभ कर देता है।
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Question 5:
टूटे-फूटे खंडहर, सभ्यता और संस्कृति के इतिहास के साथ-साथ धड़कती ज़िंदगियों के अनछुए समयों का भी दस्तावेज़ होते हैं- इस कथन का भाव स्पष्ट कीजिए।
Answer:
सिंधु घाटी सभ्यता में इतिहास से जुड़े हज़ारों प्रमाण इधर-उधर बिखरे हुए हैं। ये खंडहर इस सभ्यता के इतिहास का सबसे बड़ा प्रमाण हैं। यहाँ से प्राप्त खिलौने, गहने, बर्तन, नावें इस सभ्यता से जुड़ी हर बात का खुलासा करते हैं। इनसे वहाँ की संस्कृति के बारे में भी जानकारी प्राप्त हो जाती है। परन्तु जब इन खंडहरों पर दृष्टि पड़ती है, तो ऐसा जान पड़ता है मानो अभी बोल पड़ेंगे। इनके घर अब भी अपने होने का अहसास करा देते हैं। गलियों में खड़े हो तो लगता है कि अभी बैलगाड़ी सामने से निकल रही है। शहर की दीवारों में अब भी टेक लेकर खड़े हो सकते हैं। घरों की देहरी पर जाएँ, तो ऐसा जान पड़ता है मानो अब भी यहाँ पर लोग निवास करते हैं। रसोईघर में पकते पकवान की सुगंध अब भी आपको नाक के पास महसूस होती है। तब लगता है मानो टूटे-फूटे खंडहर, सभ्यता और संस्कृति के इतिहास के साथ-साथ धड़कती ज़िंदगियों के अनुछए समयों का भी दस्तावेज़ होते हैं।
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Question 6:
इस पाठ में एक ऐसे स्थान का वर्णन है जिसे बहुत कम लोगों ने देखा होगा, परंतु इससे आपके मन में उस नगर की एक तसवीर बनती है। किसी ऐसे ऐतिहासिक स्थल, जिसको आपने नज़दीक से देखा हो, का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
Answer:
हिमाचल प्रदेश के पालमपुर शहर में बैजनाथ का शिव मंदिर है। स्थापत्य कला में यह बेजोड़ मंदिर है। इसका निर्माण 1204 ई. में अहुक तथा मन्युक नामक के दो व्यापारियों ने करवाया था। कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण पांडवों ने आरंभ करवाया था परन्तु वे उसे पुरा न करवा सके। अतः आगे चलकर व्यापारियों ने इसका निर्माण कार्य पूरा करवाया। यह बहुत बड़ा नहीं है लेकिन यह कला का उत्कृष्ट नमूना है। इसे देखकर इसका आभास हो जाता है। इसकी दीवारों पर देवी-देवताओं की नक्काशी की गई है। मंदिर की भीतरी दीवारों पर सुंदर चित्र बनाए गए हैं। मंदिर के द्वार के आगे नंदी बैल की विशाल काले पत्थर की मूर्ति स्थापित की गई है। मंदिर के चारों ओर सुंदर प्रगाण हैं और उसमें भी देवी-देवताओं के छोटे-छोटे मंदिर बने हुए हैं। पत्थर पर किए गए काम का यह बेजोड़ नमूना है। पांडव कालीन इतिहास का यह गवाह है।
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Question 7:
नदी, कुएँ, स्नानागार और बेजोड़ निकासी व्यवस्था को देखते हुए लेखक पाठकों से प्रश्न पूछता है कि क्या हम सिंधु घाटी सभ्यता को जल-संस्कृति कह सकते हैं? आपका जवाब लेखक के पक्ष में है या विपक्ष में? तर्क दें।
Answer:
हमारा जवाब इसके पक्ष में है। इस नगर में अब जो देखने को बचा है, वह जल व्यवस्था ही है। ऐसी जल व्यवस्था जो स्वयं में अद्भुत है। आज के समय में जब हम स्वयं को आधुनिक कहते हैं, ऐसी जल व्यवस्था प्रणाली देखने को नहीं मिलती है। आज चारों तरफ पानी की कमी देखने को मिलती है। ऐसे में सिन्धु सभ्यता के अंदर हमें बड़ा सामूहिक स्नानागार मिलता है। एक ही पंक्ति में आठ स्नानाघर है। प्रत्येक घर के अपने स्नानघर हैं। पक्की ईंटों की नालियाँ है, जिसे पानी एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाया जाता रहा है। बड़े-बड़े कुएँ वहाँ पर विद्यमान हैं, जिससे नगर में पानी की व्यवस्था की जाती है। इसलिए इसे जल-संस्कृति कहना गलत नहीं होगा।
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Question 8:
सिंधु घाटी सभ्यता का कोई लिखित साक्ष्य नहीं मिलता है। सिर्फ़ अवशेषों के आधार पर ही धारणा बनाई है। इस लेख में मुअनजो-दड़ो के बारे में जो धारणा व्यक्त की गई है। क्या आपके मन में इससे कोई भिन्न धारण या भाव भी पैदा होता है? इन संभावनाओं पर कक्षा में समूह-चर्चा करें।
Answer:
मेरे मन में यह धारणा उत्पन्न होती है कि यदि सिंधु घाटी सभ्यता विद्यमान थी, तो उसके अतिरिक्त और भी सभ्यताएँ विद्यमान रही होगीं। कारण यह है कि यह सभ्यता अकेले नहीं फल-फूल सकती है। इसके भी अन्य सभ्यताओं के साथ व्यापारिक संबंध रहे होगें। एक ही स्थान पर आपको जीवनयापन के सभी साधन उपलब्ध नहीं हो सकते हैं। अतः ये भी किसी न किसी से आदान-प्रदान करते होंगे। इस सभ्यता को अकेले विकसित सभ्यता कहना उचित नहीं लगता है। लेकिन यह भी सत्य है कि हमें ऐसी केवल यही सभ्यता प्राप्त होती है।
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