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Question 1:
लेखक ने ऐसा क्यों कहा है कि अभी चैप्लिन पर करीब 50 वर्षों तक काफी कुछ कहा जाएगा?
Answer:
चार्ली चैप्लिन अपने समय के ऐसे कलाकार थे, जिनकी जितनी प्रशंसा की जाए कम है। यह उनकी महानता का सूचक है कि इतने वर्षों में भी लोग उन्हें देखना और उनके बारे में जानना पसंद करते हैं। एक सदी बीत जाने पर भी लोग उनके बारे में कहते रहे हैं, कहते रहेंगे। अब भी ऐसा बहुत कुछ है, जो उनके बारे में कहने के लिए लोगों को विवश करता है। उनके ऐसे कार्य के बारे में बीते वर्षों में और बहुत सी जानकारियाँ प्राप्त हुईं, जो किसी को नहीं थीं। इनके विषय में जाँच-पड़ताल की जाएगी। लोगों को अब और बहुत कुछ कहने के लिए मिलेगा। इसलिए लेखक ने कहा है कि आने वाले 50 वर्षों तक उनके बारे में बहुत कुछ कहा जाएगा।
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Question 2:
चैप्लिन ने न सिर्फ़ फ़िल्म-कला को लोकतांत्रिक बनाया बल्कि दर्शकों की वर्ग तथा वर्ण-व्यवस्था को तोड़ा। इस पंक्ति में लोकतांत्रिक बनाने का और वर्ण-व्यवस्था तोड़ने का क्या अभिप्राय है? क्या आप इससे सहमत हैं?
Answer:
चैप्लिन की फ़िल्में ऐसी थीं, जो हर वर्ग को ध्यान में रखकर बनाई गईं और हर दर्शक की पहुँच उस फ़िल्म तक संभव थी। जिस कारण इनकी फिल्मों से हर वर्ग जुड़ता चला गया। इसमें गरीब, मज़दूरों तथा निम्नवर्गों के लोगों को केंद्रित किया गया। उनकी समस्याओं, दुखों, खुशियों इत्यादि को इन फ़िल्मों में स्थान मिला। इस तरह फ़िल्म उच्चवर्ग का मनोरंजन का साधन मात्र नहीं रह गई थी। इसने आम जनता को भी मिलाया और लोकतंत्र स्थापित करने का प्रयास किया। इनकी फ़िल्मों ने वर्ण व्यवस्था को हटाने का पूरा प्रयास किया। अतः हम कह सकते हैं कि इनकी फ़िल्में लोकतांत्रिक बनाने और वर्ण-व्यवस्था को तोड़ने में सफल रही थी। यदि ऐसी फ़िल्में नहीं बनती तो आज भी समाज में असमानता कायम रहती। ये ऐसी सफल फ़िल्में थी, जिनसे उच्चवर्ग, मध्यमवर्ण तथा निम्नवर्ग को सोचने पर विवश किया। समाज में व्याप्त असमानता, विसंगतियों, भेदभावों पर प्रहार कर समाज में लोकतंत्र स्थापित किया और उसे जीने योग्य बनाया।
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Question 3:
लेखक ने चार्ली का भारतीयकरण किसे कहा और क्यों? गांधी और नेहरू ने भी उनका सान्निध्य क्यों चाहा?
Answer:
लेखक ने राजकूपर को चार्ली का भारतीयकरण कहा है। राजकूपर ने चार्ली से प्रभावित होकर मेरा नाम जोकर, आवारा जैसी फ़िल्में बनाईं। इन्होंने न केवल चार्ली जैसे किरदार को परदे पर पुनः जीवंत किया बल्कि उसे सफल भी बनाया। भारतीय दर्शकों द्वारा इसे प्रसन्नता से स्वीकार किया गया। चार्ली ऐसे व्यक्ति थे, जिनमें लोगों को हँसाने और प्रसन्न रखने का गुण विद्यमान था। यही कारण था कि नेहरू तथा महात्मा गाँधी जैसे लोग भी उनका सान्निध्य चाहते थे।
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Question 4:
लेखक ने कलाकृति और रस के संदर्भ में किसे श्रेयस्कर माना है और क्यों? क्या आप कुछ ऐसे उदाहरण दे सकते हैं जहाँ कई रस साथ-साथ आए हों?
Answer:
लेखक के अनुसार रस अधिक श्रेयस्कर होते हैं। वह एक कलाकृति को जीवंत बना देते हैं। यदि रस किसी कलाकृति में विद्यमान नहीं है, तो कलाकृति बेजान हो जाती है। अतः रस श्रेयस्कर हैं। कालिदास की रचना अभिज्ञानशकुन्तलम् ऐसी ही एक कृति हैं, जिसमें कई रस एक साथ आकर इसे सुंदर और विशिष्ट बना देते हैं। इसमें श्रृंगार, वीर, शांत, करुण, रौद्र इत्यादि रसों का समावेश है। अपनी इसी कृति के कारण कालिदास सदा के लिए अमर हो गए हैं।
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Question 5:
जीवन की जद्दोजहद न चार्ली के व्यक्तित्व को कैसे संपन्न बनाया?
Answer:
चार्ली का जीवन बचपन से ही विषमताओं और कष्टों से भरा हुआ था। उनके पिता ने उन्हें बहुत ही छोटी उम्र में छोड़ दिया था। माँ मानसिक रोगी थीं। उनके पागलपन ने उन्हें अचानक ही कष्टों के मध्य ला खड़ा किया। एक तरफ़ गरीबी तथा दूसरी तरफ़ पागल माँ। शीघ्र ही उन्हें उस समय व्याप्त पूंजीपति वर्ग द्वारा किए गए शोषण का भी शिकार होना पड़ा। उनकी नानी खानाबदोश थी और पिता यहूदी थे। इन विशेषताओं के कारण वह घुमंतू स्वभाव के बने थे और जीवन को नजदकी से देखा। जीवन में जटिलता बचपन से ही थी, जो आगे चलकर बढ़ती चली गई। लेकिन इनसे चार्ली पर बुरा असर नहीं पड़ा और उनका व्यक्तित्व ऐसे ही निखरता गया जैसे सोना घिसकर चमक जाता है। कष्टों ने उन्हें जीवन की बहुत अच्छी समझ दी। इसका यह प्रभाव पड़ा कि उनमें जीवन मूल्य कूट-कूटकर विद्यमान हो गए। आगे चलकर इन्हीं जीवन मूल्यों ने उनके व्यक्तित्व को संपन्न बनाया।
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Question 6:
चार्ली चैप्लिन की फिल्मों में निहित त्रासदी/करुणा/हास्य का सामंजस्य भारतीय कला और सौंदर्यशास्त्र की परिधि में क्यों नहीं आता?
Answer:
भारतीय कला और सौंदर्यशास्त्र में त्रासदी और करुणा को जीवन का अभिन्न अंग माना जाता है। यह सही भी है। त्रासदी और करुणा हर किसी के जीवन में विद्यमान होती है। हास्य मात्र मनोरंजन का साधन होता है, जो कभी कभार जीवन में आकर उसे हल्का बना देता है। यही कारण है कि इसे हमारी रचनाओं में दूसरों को हँसाने मात्र का साधन ही माना गया है। जब हम प्राचीन ग्रंथों का अध्ययन करते हैं, तो हमें त्रासदी और करुणा का सामंजस्य तो देखने को मिलता है लेकिन हास्य का समावेश मात्र विदूषक तक रह जाता है। वह अपनी चेष्टाओं से कुछ क्षण के लिए लोगों में हास्य का भाव पैदा करता है लेकिन कथा पुनः त्रासदी और करुणा के भाव में डूब जाती है। हम हास्य को जीवन का अंग नहीं मानते क्योंकि हम दूसरों या स्वयं पर हँसना श्रेयकर नहीं समझते हैं। यही कारण है कि त्रासदी/करुणा/हास्य का सामंजस्य हमारे यहाँ देखने को नहीं मिलता है।
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Question 7:
चार्ली सबसे ज़्यादा स्वयं पर कब हँसता है?
Answer:
चार्ली स्वयं पर हँसकर लोगों को यह बताता है कि वह अपना मज़ाक नहीं उड़ा रहा है। वह अपनी गर्व की भावना, अपने प्रति सम्मान की भावना, अपनी सफलता, अपनी सभ्यता तथा संस्कृति के प्रति प्रेम तथा अपनी श्रेष्ठता को दूसरों को दिखाने के उद्देश्य से स्वयं पर हँसता है। उसकी हँसी मज़ाक का कारण नहीं है, उसकी हँसी सम्मान का कारण है। प्रायः लोग दूसरों पर तब हँसते हैं, जब वह मज़ाक उड़ाते हैं। लेकिन चार्ली तब हँसता है, जब वह अपने श्रेष्ठता सिद्ध कर देता है। वह इस हँसी के माध्यम से उन सभी मानदंडों तो धराशायी कर देता है, जो मनुष्य को उपहास का कारण बना डालते हैं।
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Question 1:
आपके विचार से मूक और सवाक् फ़िल्मों में से किसमें ज़्यादा परिश्रम करने की आवश्यकता है और क्यों?
Answer:
हमारे विचार से मूक फ़िल्मों में ज़्यादा परिश्रम करने की आवश्यकता होती है। प्रायः हम अपने भावों को शब्दों के माध्यम से व्यक्त कर देते हैं। इससे भावों को पहचानने में सफलता मिलती है। लेकिन मूक फ़िल्मों में ऐसा नहीं होता है। यहाँ दर्शकों को अपने चेहरे में उठने वाले भावों से समझाना होता है कि अभिनेता या अभिनेत्री क्या कहना चाहते हैं। यहाँ अपने चेहरे पर उठने वाले भावों तथा अपनी शारीरिक चेष्टाओं के माध्यम से दर्शकों को समझाना होता है। अतः इसमें परिश्रम अधिक लगता है।
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Question 2:
सामान्यतः व्यक्ति अपने ऊपर नहीं हँसते, दूसरों पर हँसते हैं। कक्षा में ऐसी घटनाओं का ज़िक्र कीजिए जब-
(क) आप अपने ऊपर हँसे हों;
(ख) हास्य करुणा में या करुणा हास्य में बदल गई हो।
Answer:
(क) बात उस समय की है, जब हम कक्षा में अध्यापिका का जन्मदिन मनाने के लिए केक लेकर आए थे। मैंने किसी को केक लेकर नहीं जाने दिया कि कहीं कोई केक गिरा न दे। बात तब हास्यपद बन गई, जब मैं स्वयं केक लेकर गिर पड़ा। केक जमीन पर गिरा ही नहीं बल्कि में भी उसके ऊपर गिर पड़ा। सारा केक मेरे मुँह और कपड़ों में लग गया। यह ऐसा किस्सा था कि जब मैं खड़ा हुआ तो स्वयं ही ज़ोर-ज़ोर की हँसने लगा।
(ख) हम सब मित्र एक चुटकुले पर हँस रहे थे। हमारे एक मित्र के हाथ पर नुकीली पेंसिल थी। हँसते-हँसते पता नहीं क्या हुआ मेरे मित्र का हाथ उसके मुँह में चला गया और पेंसिल उसके गाल में घुस गई। उसका गाल लहुलूहान हो गया। सारा माहौल हास्य से करुणा में बदल गया।
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Question 3:
चार्ली हमारी वास्तिवकता है, जबकि सुपरमैन स्वप्न आप इन दोनों में खुद को कहाँ पाते हैं?
Answer:
मैं स्वयं को चार्ली में पाता हूँ। जीवन में करुणा और त्रासदी का खेल चलता रहता है। हम कभी परेशानियों के समय पर रोते हैं, तो कभी हँसते हैं। सुपरमैन टी.वी. पर देखने में अच्छा लगता है लेकिन असल ज़िदगी से उसका कोई लेना-देना नहीं है। चार्ली जीवन के बहुत समीप है। वह हमारी तरह हँसता है, रोता है, परेशान होता है, समस्याओं का हल निकालने का प्रयास करता है, कभी-कभी तंग आकर बैठ जाता है और फिर हिम्मत बटोर कर उठ खड़ा होता है। सुपरमैन में हर घटना तथा स्थिति कल्पना के आधार पर बनाई जाती है। असल ज़िंदगी से इनका कोई वास्ता नहीं है।
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Question 4:
भारतीय सिनेमा और विज्ञापनों ने चार्ली की छवि का किन-किन रूपों में उपयोग किया है? कुछ फ़िल्में (जैसे आवारा, श्री 420, मेरा नाम जोकर, मिस्टर इंडिया और विज्ञापनों (जैसी चैरी ब्लॉकसम)) को गौर से देखिए और कक्षा में चर्चा कीजिए।
Answer:
भारतीय सिनेमा और विज्ञापनों ने चार्ली को विभिन्न रुपों में चित्रित किया है। यहाँ कहीं चार्ली जोकर है, तो कहीं आवारा आदमी है, तो कहीं दूसरों की सहायता करने वाला अदृश्य व्यक्ति है।
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Question 5:
आजकल विवाह आदि उत्सव, समारोहों एवं रेस्तराँ में आज भी चार्ली चैप्लिन का रूप धरे किसी व्यक्ति से आप अवश्य टकराए होंगे। सोचकर बताइए कि बाज़ार ने चार्ली चैप्लिन का कैसा उपयोग किया है?
Answer:
मुझे एक बार मॉल में जाने का अवसर मिला था। मैं अपनी माँ के साथ चल रहा था कि किसी ने मेरा हाथ पकड़ा। मैं उसे देखकर घबरा गया। उसने मेरा हाथ पकड़ा और मुझे एक दुकान की ओर ले गया। वह जुतों की बहुत बड़ी दुकान थी, जहाँ चार्ली ने मुझे अपने जूते दिखाए और जूते खरीदने का अनुरोध किया। दुकानदार ने चार्ली का उपयोग जुते बेचने के लिए किया था। इस तरह लोग बहुत प्रकार से चार्ली का प्रयोग करते हैं। रेस्टोरेंट इत्यादि के बाहर भी आपको ये मिल जाएँगे। लोगों ने एक प्रसिद्ध व्यक्ति को सामान बेचने वाला बना दिया है। चार्ली के साथ यह अन्याय है। चार्ली सामान बेचने के साधन नहीं है। यह वह पात्र है, जो दुखी चेहरे में हँसी के भाव ला सकता है। लोग इसे व्यवसायिक तौर पर प्रयोग करके पैसा कमा रहे हैं।
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Question 1:
........ तो चेहरा चार्ली-चार्ली हो जाता है। वाक्य में चार्ली शब्द की पुनरुक्ति से किस प्रकार की अर्थ-छटा प्रकट होती है? इसी प्रकार के पुनरुक्त शब्दों का प्रयोग करते हुए कोई तीन वाक्य बनाइए। यह भी बताइए कि संज्ञा किन स्थितियों में विशेषण के रूप में प्रयुक्त होने लगती है?
Answer:
(क) मैं शर्म से पानी-पानी हो गया।
(ख) मैं डाल-डाल तू पात-पात।
(ग) घर-घर की यही कहानी है।
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Question 2:
नीचे दिए वाक्यांशों में हुए भाषा के विशिष्ट प्रयोगों को पाठ के संदर्भ में स्पष्ट कीजिए।
(क) सीमाओं से खिलवाड़ करना
(ख) समाज से दुरदुराया जाना
(ग) सुदूर रूमानी संभावना
(घ) सारी गरिमा सुई-चुभे गुब्बारे जैसे फुस्स हो उठेगी।
(ङ) जिसमें रोमांस हमेशा पंक्चर होते रहते हैं।
Answer:
(क) हमें सीमाओं में रहना चाहिए, उनके साथ छेड़छाड़ करना अच्छा नहीं होता है।
(ख) चार्ली चेप्लिन को समाज के द्वारा दुरदुराया गया।
(ग) चार्ली के बारे में जानने के लिए सुदूर रूमानी संभावना व्यक्त हुई है।
(घ) सारा गर्व ऐसे निकल गया मानो किसी ने गुब्बारे में सुई मार दी गई हो और फुस्स करके उसकी सारी हेकड़ी निकल गई हो।
(ङ) रोमांस हमेशा समाप्त हो जाता है।
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Question 1:
(क) दरअसल सिद्धांत कला को जन्म नहीं देते, कला स्वयं अपने सिद्धांत या तो लेकर आती है या बाद में उन्हें गढ़ना पड़ता है।
(ख) कला में बेहतर क्या है- बुद्धि को प्रेरित करने वाली भावना या भावना को उकसाने वाली बुद्धि?
(ग) दरअसल मनुष्य स्वयं ईश्वर या नियति का विदूषक, क्लाउन, जोकर या साइड किक है।
(घ) सत्ता, शक्ति, बुद्धिमता, प्रेम और पैसे के चरमोत्कर्ष में जब हम आईना देखते हैं, तो चेहरा चार्ली-चार्ली हो जाता है।
(ङ) मॉर्डन टाइम्स द ग्रेट डिक्टेटर आदि फ़िल्में कक्षा में दिखाई जाएँ और फ़िल्मों में चार्ली की भूमिका पर चर्चा की जाए।
Answer:
(क) कला का जन्म पहले होता है। उसक बाद उसके सिद्धांत बनते हैं। सिद्धांत पहले बनाकर कला को विकसित नहीं किया जा सकता है। कला तो मनुष्य के हृदय के भावों से उपजी है। वह पहले विकसित होती है तथा बाद में अपने सिद्धांतों को स्वयं बनाती है।
(ख) कला में बेहतर है भावना को उकसाने वाली बुद्धि। क्योंकि कला का संबंध भावना से है।
(ग) मनुष्य को ईश्वर ने अपना जोकर बनाकर भेजा है।
(घ) बिलकुल सही है। एक ऐसा मनुष्य जिसके पास सत्ता हो, उसे चलाने की शक्ति विद्यमान हो, बुद्धि का साथ हो, इसके अतिरिक्त वह प्रेम और पैसे से संपन्न हो, तब हम स्वयं को चार्ली के रूप में देखते हैं। वह ऐसी स्थिति में हँसता है।
(ङ) चार्ली की भूमिका स्वयं एक शिक्षा है, जो हमे सिखाती है कि कठिन से कठिन समय में हमें कैसे चलना चाहिए। जीवन में संघर्ष और कठिनाइयाँ विद्यमान है। यदि हम उस समय स्वयं को संयंत करने नहीं चलेंगे, तो मुँह की खाएँगे। उनकी फ़िल्में हमें सचाई और उस सचाई को सहना तथा उसमें प्रसन्नतापूर्वक जीना सिखाती है।
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