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Question 1:
कुश्ती के समय ढोल की आवाज़ और लुट्टन के दाँव-पेंच में क्या तालमेल था? पाठ में आए ध्वन्यात्मक शब्द और ढोल की आवाज़ में आपके मन में कैसी ध्वनि पैदा करते हैं, उन्हें शब्द दीजिए।
Answer:
कुश्ती के समय जब ढोल की आवाज़ सुनाई देती थी, तो लुट्टन रोमांचित हो जाता था। ढोल की आवाज़ उसके लहू में जोश भर देता थी। पहली बार जब उसने कुश्ती लड़ी, तो यही ढोल साथी की तरह उसके साथ बज रहा था। ढोल में पड़ती हर थाप मानो उसे प्रेरणा दे रही हो।
मेरे मन में ढोल की आवाज़ लुट्टन के समान रोमांचित कर देती है और वह मुझे कहता है कि सब भूल जा नाच। वह मुझे तड़-तड़ धा, कहकर मानो लय दे रहा होता है, नाचे के लिए। मैं प्रसन्नता से झूम जाता हूँ।
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Question 2:
कहानी के किस-किस मोड़ पर लुट्टन के जीवन में क्या-क्या परिवर्तन आए?
Answer:
कहानी के आरंभ में लुट्टन के माता-पिता चल बसे। सास ने उसका पालन-पोषण किया। कहानी के मध्य में किशोर अवस्था में दंगल जीतकर वह मशहूर पहलवान बन गया। उसकी इस ख्याति ने उसके जीवन को सरल बना दिया। अब हर प्रकार की सुख-सुविधा उसके पास थी। दो जवान बेटों का पिता बन चूका था परन्तु पत्नी स्वर्ग सिधार गई। राजा जी के मरते ही उनके बेटे ने उन्हें अपने यहाँ से जाने के लिए कह दिया। अब जीविका का एकमात्र साधन हाथ से निकल गया। गाँव आकर उसने बेटों के साथ जीना चाहा, तो हैज़े ने गाँव को चपेट में ले लिया। कहानी के अंत में हैज़े की बीमारी से उसके दोनों बेटे मृत्यु को प्राप्त हो गए। आखिर में वह स्वयं भी इस बीमारी का शिकार होकर संसार से चला गया।
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Question 3:
लुट्टन पहलवान ने ऐसा क्यों कहा होगा कि मेरा गुरु कोई पहलवान नहीं, यही ढोल है?
Answer:
लुट्टन पहलवान जब पहली बार पहलवानी करने दंगल में जाता है, तो एकमात्र ढोल की आवाज़ होती है, जो उसे अपना साहस बढ़ाती नज़र आती है। ढोल की हर थाप में वह एक निर्देश सुनता है, जो उसे अगला दाँव खेलने के लिए प्रेरित करती है। यही कारण है कि लुट्टन पहलवान ढोल को अपना गुरु मानता है।
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Question 4:
गाँव में महामारी फैलने और अपने बेटों के देहांत के बावजूद लुट्टन पहलवान का ढोल क्यों बजाता रहा?
Answer:
'ढोल' लुट्टन को प्रेरणा स्रोत लगता है। यही कारण है कि लुट्टन अपने बेटों को भी पहलवानी सिखाते समय ढोल बजाता है ताकि उसी की भांति वे भी ढोल से प्रेरणा लें। जब उसके गाँव में महामारी फैलती है, तो लोगों की दयनीय स्थिति उसे झकझोर देती है। वह ऐसे समय में ढोल बजाता है, जब मौत की अँधेरी छाया लोगों को भयभीत करके रखती है। रात का समय ऐसा होता है, जब गाँव में अशांति, भय, निराशा और मृत्यु का शोक पसरा रहता है। ऐसे में लुट्टन लोगों के जीवन में प्रेरणा भरता है। अपने बेटों की मृत्यु के समय तथा उनकी मृत्यु के बाद भी गाँव में ढोल बजाता है। उसकी ढोल की आवाज़ लोगों में जीवन का संचार करती है। उन्हें सहानुभूति का अनुभव होता है।
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Question 5:
ढोलक की आवाज़ का पूरे गाँव पर क्या असर होता था?
Answer:
ढोलक की आवाज़ सुनकर लोगों को प्रेरणा तथा सहानुभूति मिलती थी। मृत्यु के भय से आक्रांत लोग, अर्धचेतन अवस्था में पड़े लोग, जिदंगी से हारे लोग ढोलक की आवाज़ से जी उठते थे। रात की विभीषिका उन्हें आक्रांत नहीं कर पाती थी। जब तक ढोल बजता था उनकी अश्रु से भरी आँखें उसे सुनकर चमक उठती थी। मृत्यु का भय इस आवाज़ से चला जाता था और जीवन का संचार होता था।
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Question 6:
महामारी फैलने के बाद गाँव में सूर्योदय और सूर्यास्त के दृश्य में क्या अंतर होता था?
Answer:
सूर्योदय के बाद लोग चाहे कितने दुखी क्यों न हो, मृत्यु का भय उन्हें चाहे सता रहा हो लेकिन एक-दूसरे से बातचीत करते थे। इस हाहाकार में वे एक-दूसरे को सहानुभूति देते तथा मदद करते थे। गाँव में चहल-पहल दिखाई देती थी। बीमारी से ग्रस्त होने के बाद भी दिन का प्रकाश उनके रक्त में संचार भर देता था। सूर्यास्त के बाद दृश्य ठीक इसके विपरीत हो जाता था। सब अपने घरों में चले जाते थे। किसी के बोलने का शब्द नहीं होता था। लोग मरते हुए अपने संबंधी को दो शब्द भी बोल नहीं पाते थे। एकमात्र लुट्टन का ढोल उस विभीषिका को चुनौती देता प्रतीत होता था।
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Question 7:
कुश्ती या दंगल पहले लोगों और राजाओं का प्रिय शौक हुआ करता था। पहलवानों को राजा लोगों के द्वारा विशेष सम्मान दिया जाता था-
(क) ऐसी स्थिति अब क्यों नहीं है?
(ख) इसकी जगह अब किन खेलों ने ले ली है?
(ग) कुश्ती को फिर से प्रिय खेल बनाने के लिए क्या-क्या कार्य किए जा सकते हैं?
Answer:
(क) क्योंकि अब राजाओं का राज नहीं है। अब ऐसे दंगल भी नहीं होते हैं।
(ख) इसकी जगह अब क्रिकेट, कुश्ती, हॉकी इत्यादि ने ले ली है।
(ग) ग्रामीण क्षेत्रों में इसे बढ़ावा देने के प्रयास किए जाने चाहिए। पहलवानों को विकसित करने के लिए उन्हें आवश्यक सुविधाएँ देनी चाहिए।
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Question 8:
आशय स्पष्ट करें-
आकाश से टूटकर यदि कोई भावुक तारा पृथ्वी पर जाना भी चाहता तो उसकी ज्योति और शक्ति रास्ते में ही शेष हो जाती थी। अन्य तारे उसकी भावुकता अथवा असफलता पर खिलखिलाकर हँस पड़ते थे।
Answer:
लुट्टन के गाँव में महामारी फैल गई थी। इस कारण उनके गाँव में रात भी बहुत भयानक प्रतीत होती थी। ऐसे समय में लेखक ने रात के दृश्य का वर्णन किया है। लेखक कहता है कि रात में आकाश में तारों का टूटना स्पष्ट दिखाई देता है। यदि आकाश से कोई तारा टूटकर गिरता है, तो अँधेरे के साम्राज्य में उसका प्रकाश तथा शक्ति समाप्त हो जाती थी। ऐसा जान पड़ता था कि मानो बाकी तारे उसके प्रयास में उसका मज़ाक उड़ा रहे हों।
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Question 9:
पाठ में अनेक स्थलों पर प्रकृति का मानवीकरण किया गया है। पाठ में से ऐसे अंश चुनिए और उनका आशय स्पष्ट कीजिए।
Answer:
मानवीकरण के कुछ अंश इस प्रकार हैं-
(क) मलेरिया और हैज़े से पीड़ित गाँव भयार्त्त शिशु की तरह थर-थर काँप रहा था।
गाँव भर में मलेरिया तथा हैज़ा फैला पड़ा था। लोग मर रहे थे।
(ख) अँधेरी रात चुपचाप आँसू बहा रही थी।
ऐसा लगता था मानो रात रो रही हो।
(ग) आकाश से टूटकर यदि कोई भावुक तारा
तारे को मनुष्य के समान भावुक दिखाया है। तारे का टूटकर गिरने का वर्णन है।
(घ) अन्य तारे उसकी भावुकता अथवा असफलता पर खिलखिलाकर हँस पड़ते थे।
यहाँ तारों को मज़ाक उड़ाते दिखा गया है।
(ङ) रात्रि अपनी भीषणताओं के साथ चलती रहती
रात्रि को मनुष्य के समान चलता हुआ दिखा गया है।
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Question 1:
पाठ में मलेरिया और हैज़े से पीड़ित गाँव की दयनीय स्थिति को चित्रित किया गया है। आप किसी ऐसी अन्य आपद स्थिति की कल्पना करें और लिखे कि आप ऐसी स्थिति का सामना कैसे करेंगी/करेंगे?
Answer:
मैं पिछले महीने अपने चाचा की शादी के लिए काशीपुर में आई थी। जून का अंतिम सप्ताह था। गर्मी का मौसम था। हमने सोचा भी नहीं था कि इस मौसम में बारिश होगी। परन्तु हमारे पहुँचने के बाद यहाँ लगातार अट्ठारह घंटे वर्षा होने लगी इस वर्षा ने गंगा का जलस्तर बढ़ा दिया। गंगा नदी में बाढ़ आ गई। इसका परिणाम यह हुआ की गंगा का पानी बहकर काशीपुर में घुस गया। हम चूंकि नदी के किनारे बसे मकानों पर नहीं रहे थे। इसलिए हम बच गए। वर्षा लगातार होने से गंगा का जल स्तर कम नहीं हो रहा था। धीरे-धीरे पानी नदी के तटबंधों को तोड़ता हुआ शहर में घुसना आरंभ हो गया। हम पहले से ही सुरक्षित स्थानों में थे। गंगा का पानी विकराल रूप धारण करता हुआ बढ़ रहा था। उसके रास्ते में जो भी आ रहा था, वह उसे भयानक राक्षस की तरह निगल रहा था। पानी ने धीरे-धीरे किनारे में खड़ी सारी इमारतों को निगलना आरंभ किया। उसे देखकर देखने वालों की साँसे थम गई। पानी का भयानक रूप इससे पहले कभी किसी ने नहीं देखा था। वह स्थिति प्रलय से कम नहीं थी। हम इस दृश्य को देखते ही रह गए। लगातार वर्षा ने हमारे शहर को पूरे देश से काट दिया। एक महीने तक हम यहाँ फंसे रह गए। इन दिनों में यहाँ के हालात बहुत ही खराब हो चुके थे। नदी ने शहर के बाहरी हिस्सों को नष्ट कर डाला था। दुकानें और होटल बह चुके थे। लोग आर्थिक हानी से परेशान बैठे रो रहे थे। पानी के कम होने के बाद चारों ओर कीचड़ तथा गंदगी का राज था। नदी के साथ लाशें बहकर आई थीं। उनके जगह-जगह ढेर लग गए। चारों तरफ बदबू का वातावरण था। मच्छर, मक्खी आदि का प्रकोप फैला हुआ था। मलेरिया, डेंगू, डायरिया इत्यादि ने शहर में पकड़ बना ली थी। ऐसे में पिताजी ने स्थिति भाँप ली थी। अतः वे आवश्यक दवाइयाँ तथा सामान ले आए थे। हमने पूरे कपड़े पहने तथा पैरों में जुराबें पहनकर रखी। इस तरह हमने डेंगू तथा मलेरिया से बचाव किया। खाना बनाते समय विशेष ध्यान रखते थे। घर की सफ़ाई रखते। मच्छरों से बचने के लिए हमने गली की सफाई करवाई तथा दवाई डालवाई।
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Question 2:
ढोलक की थाप मृत-गाँव में संजीवनी शक्ति भरती रहती थी- कला से जीवन के संबंध को ध्यान में रखते हुए चर्चा कीजिए।
Answer:
कला मनुष्य के साथ आज से ही नहीं आरंभ काल से ही विद्यमान है। यही कारण है कि आप किसी पुरानी जन-जाति को ही ले लें। उनके अपने नृत्य तथा संगीत विद्यमान है। कला जीवन के कठिन समय में राहत देती है। मनुष्य का खाली समय कला साधना में ही बितता है। वह ऐसा कुछ सुनना चाहता है, तो उसकी आत्मा तक के तारों को झनझना दे। कला जीवन में प्रेरणा, आनंद तथा रोमांच भर देती है। कुछ लोग तो जीवन भर कला की साधना करने में निकाल देते हैं। कला के विभिन्न रूप हैं। एक में हम चित्रकारी, मूर्तिकारी आदि करते हैं। दूसरी संगीत साधना कला कहलाती है। इसमें हम वाद्य यंत्र, संगीत तथा नृत्य करते हैं। यह किसी न किसी रूप में हमें आनंद का अनुभव कराती है।
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Question 3:
चर्चा करें- कलाओं का अस्तित्व व्यवस्था का मोहताज़ नहीं है।
Answer:
बहुत सुंदर पंक्ति है कि कलाओं का अस्तित्व व्यवस्था का मोहताज़ नहीं है। कला मनुष्य के हृदय का बहुत भीतरी अंग है। इसे मनुष्य ने कहीं से सीखा नहीं है बल्कि स्वयं ही मनुष्य के दुखी या आनंदित हृदय से उपजी है। अतः जब मनुष्य सभ्य नहीं था, तब भी यह मनुष्य के साथ थी। कला को व्यवस्था की आवश्यकता नहीं है। इसके लिए तो बस लगन की आवश्यकता है। सच्चे भाव की आवश्यकता है। जहाँ भाव होता है, यह वहीं विकसित हो जाती है। यह तो आज के मनुष्य ने इसे व्यवस्था में बाँधने की कोशिश की है। यदि गौर करें, तो यह स्वयं पैदा हो जाती है।
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Question 1:
हर विषय, क्षेत्र, परिवेश आदि के कुछ विशिष्ट शब्द होते हैं। पाठ में कुश्ती से जुड़ी शब्दावली का बहुतायत प्रयोग हुआ है। उन शब्दों की सूची बनाइए। साथ ही नीचे दिए गए क्षेत्रों में इस्तेमाल होने वाले कोई पाँच-पाँच शब्द बताइए-
•
चिकित्सा
•
क्रिकेट
•
न्यायालय
•
या अपनी पसंद का कोई क्षेत्र
Answer:
• चिकित्सा- बीमारी, जाँच, औषधि, चिकित्सक, परीक्षण
• क्रिकेट- रन, विकेट, आउट, कैच, किल्ली
• न्यायालय- वकील, अपराधी, केस, पेशी, कारावास
• शिक्षा- छात्र-छात्राएँ, विद्यालय, पुस्तकालय, पढ़ाई, अध्यापक।
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Question 2:
पाठ में अनेक अंश ऐसे हैं जो भाषा के विशिष्ट प्रयोगों की बानगी प्रस्तुत करते हैं। भाषा का विशिष्ट प्रयोग न केवल भाषाई सर्जनात्मकता को बढ़ावा देता है बल्कि कथ्य को भी प्रभावी बनाता है। यदि उन शब्दों, वाक्यांशों के स्थान पर किन्हीं अन्य का प्रयोग किया जा तो संभवतः वह अर्थगत चमत्कार और भाषिक सौंदर्य उद्घाटित न हो सके। कुछ प्रयोग इस प्रकार हैं-
• फिर बाज़ की तरह उस पर टूट पड़ा।
• राजा साहब की स्नेह-दृष्टि ने उसकी प्रसिद्धि में चार चाँद लगा दिए।
• पहलवान की स्त्री भी दो पहलवानों को पैदा करके स्वर्ग सिधार गई थी।
इन विशिष्ट भाषा-प्रयोगों का प्रयोग करते हुए एक अनुच्छेद लिखिए।
Answer:
गोपाल ने कुश्ती के मैदान पर अपने विरोधी को पहले स्नेह-दृष्टि से देखा और प्रणाम किया। सीटी बजते ही वह प्रतिद्ंवद्वि पर बाज़ की तरह टूट पड़ा। उसने अपने विरोधी को इस प्रकार पछाड़ा कि इस जीत से उसकी प्रसिद्धि में चार चाँद लग गए। उसे इस जीत की प्रसन्नता तो थी परन्तु दुख भी था क्योंकि उसकी यह प्रसिद्धि सुनने से पहले उसकी माताजी स्वर्ग सिधार गई।
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Question 3:
जैसे क्रिकेट की कमेंट्री की जाती है वैसे ही कुश्ती की कमेंट्री की गई है? आपको दोनों में क्या समानता और अंतर दिखाई पड़ता है?
Answer:
समानता- क्रिकेट में बल्लेबाज़ पर सबकुछ निर्धारित रहता है। अतः कुश्ती में भी पहलवान पर सबका ध्यान रहता है। कुश्ती कमेंट्री करते समय पहलवान के बारे में बताया जाता है, क्रिकेट में बल्लेबाज़ और गेंदबाज़ के बारे में बताया जाता है। कुश्ती में उसके चेहरे के भाव और उठाए गए कदम के बारे में बताया जाता है, क्रिकेट में बल्लेबाज़ और गेंदबाज़ के चेहरे और भाव के बारे में बताया जाता है।
अंतर- क्रिकेट में जब बल्लेबाज़ बॉल को मार देता है, तो फिर खेल बॉल पर निर्भर करती है। अतः कमेंट्री में गेंद और अन्य खिलाड़ी जो उसके पीछे भागते हैं, उनकी प्रतिक्रिया बतायी जाती है। लेकिन कुश्ती करते हुए पहलवान के दाँव-पेच पर निर्भर होता है। वह जैसा दाँव मारेगा वैसा ही उसे फल मिलेगा। अतः यहाँ कमेंट्री दोनों पर ही आधारित होती है। अन्य किसी के बारे में नहीं बताया जाता है।
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