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Question 1:
मालवा में जब सब जगह बरसात की झड़ी लगी रहती है तब मालवा के जनजीवन पर इसका क्या प्रभाव पड़ता है?
Answer:
मालवा में जब सब जगह बरसाती की झड़ी लगी रहती है, तब मालवा के जनजीवन पर इसका गहरा प्रभाव पड़ता है। खूब बरसात होती है। मालवा में स्थित नदी-नाले पानी से भर जाते हैं। यहाँ तक की बरसात का पानी घरों में पहुँच जाता है। फसलें लहलहा उठती हैं। मालवा में व्याप्त बाबड़ी, तालाब, कुएँ तथा तलैया सब पानी से लबालब भर जाते हैं। इससे मालवा में लगता है कि भगवान की खूब कृपा हुई है। वहाँ की बरसात की झड़ी मालवा को समृद्धशाली बनाती है।
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Question 2:
अब मालवा में वैसा पानी नहीं गिरता जैसा गिरा करता था। उसके क्या कारण हैं?
Answer:
इस बात के बहुत से कारण हैं-
(क) औद्योगिकरण ने पर्यावरण को नुकसान पहुँचाया है। इसके कारण पर्यावरण में भयंकर बदलाव देखने को मिले हैं। इसने जल, थल तथा भूमि प्रदूषण को बढ़ावा दिया है।
(ख) वायुमण्डल में कार्बन डाईऑक्साइड गैस की अधिकता के कारण भी मौसम पर प्रभाव पड़ रहा है। यह गर्म होती है, जिसके कारण वायुमण्डल और ओजन परत को नुकसान पहुँच रहा है।
(ग) पेड़ों की अत्यधिक कटाई के कारण भी मालवा धरती उज़डने लगी है।
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Question 3:
हमारे आज के इंजीनियर ऐसा क्यों समझते हैं कि वे पानी का प्रबंध जानते है और पहले ज़माने के लोग कुछ नहीं जानते थे?
Answer:
आज के इंजीनियर अपने तकनीक ज्ञान को बहुत उच्च मानते हैं। उनको लगता है कि पुराने ज़माने में लोगों को तकनीकी ज्ञान नहीं था। वे तकनीकी शिक्षा से अनजाने थे। ऐसा सोचकर वे स्वयं एक गलतफहमी में जीते हैं। वह मानते हैं कि पश्चिमी सभ्यता ने ज्ञान का प्रसार किया है। भारत के लोगों को ज्ञान था ही नहीं। रिनसां के बाद से ही लोगों के अंदर ज्ञान का फैलाव हुआ।
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Question 4:
'मालवा में विक्रमादित्य, भोज और मुंज रिनेसा के बहुत पहले हो गए।' पानी के रखरखाव के लिए उन्होंने क्या प्रबंध किए?
Answer:
इन राजाओं ने पठारों की कमज़ोरी को समझा और पानी को रोकने के लिए बेहतर इंतज़ाम किए। उन्होंने इसके लिए सबसे पहले वहाँ पर तालाब, कुएँ, बावड़ियों का निर्माण करवाया। इस तरह वह बरसात का पानी जमा करके रख सकते थे। यह पानी पूरे वर्ष पानी की व्यवस्था करता था और लोगों को पानी के लिए तरसना नहीं पड़ता था। मालवा इसी का प्रमाण है।
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Question 5:
'हमारी आज की सभ्यता इन नदियों को अपने गंदे पानी के नाले बना रही है।'- क्यों और कैसे?
Answer:
आज के समय में मनुष्य तेज़ी से प्रगति कर रहा है परन्तु इस प्रगति ने बहुत नुकसान भी किया है। प्रदूषण इस प्रगति का सबसे भयानक रूप है। प्रदूषण की मार से जल, थल और आकाश पूरी तरह से ग्रसित हैं। पानी जीवन प्रदान करता है परन्तु मनुष्य ने इस अमूल्य जल संसाधन को भी प्रदूषित कर दिया है। नदियाँ जो पानी का मुख्य स्रोत है, वे प्रदूषण की चपेट में आ गई हैं। इनमें शहरों का गंदा पानी बहा दिया जाता है साथ कारखानों का जहरीला पदार्थ भी इसमें डाल दिया जाता है। परिणाम इनका पानी पीने योग्य नहीं रहा है। नदियाँ सदियों से मनुष्य के लिए पानी की आपूर्ति करती आ रही हैं। लेकिन आज इनका पानी इतना जहरीला हो गया है कि इससे भयंकर बीमारी होने लगी हैं। यहां तक इसमें निवास करने वाले जीव-जन्तुओं का जीवन भी प्रदूषण के कारण विलुप्ति की कगार पर है। सरकार तथा कई सामाजिक संस्थाएँ समय-समय पर इसे बचाने के लिए प्रयास कर रही हैं। परन्तु उनके सभी प्रयास असफल रहे हैं। यदि ऐसा ही रहा तो यह गंदे नाले में बदल जाएँगी। यमुना नदी तो नाले में बदल ही चुकी है। हमें चाहिए कि इस ओर ध्यान दे और प्रदूषण से इनकी रक्षा करें।
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Question 6:
लेखक को क्यों लगता है कि 'हम जिसे विकास की औद्योगिक सभ्यता कहते हैं वह उजाड़ की अपसभ्यता है'? आप क्या मानते हैं?
Answer:
हम लेखक के इस कथन से बिलकुल सहमत है। ऐसी औद्योगिक सभ्यता जिसने विकास के नाम पर प्रदूषण, प्रकृति दोहन, पृथ्वी का विनाश ही किया है। उसे अपसभ्यता ही कहेंगे। यह कौन-सा विकास है, जो हमें प्रगति के नाम पर विनाश की ओर ले जा रहा है। हम एक आविष्कार करते हैं और उससे पाँच नई समस्याएँ पैदा कर लेते हैं। हम किसी भी विकास के साधनों पर नज़र डालें तो हमें विकास के स्थान पर विनाश ही विनाश दिखाई देगा। मनुष्य ने अपनी उत्पत्ति के साथ से ही पृथ्वी का दोहन करना आरंभ कर दिया था। परन्तु तब दोहन की प्रक्रिया बहुत ही मंद थी। जैसे-जैसे मनुष्य का विकास होता गया, उसने प्रकृति का दोहन तेज़ी से करना आरंभ कर दिया। उसने रहने के लिए पेड़ों को काटा, आवास के लिए ईंट के निर्माण के लिए मिट्टी का प्रयोग किया, कोयले, सीमेंट, धातु, हीरे इत्यादि की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए उसने पृथ्वी को खोदा। यह कैसा विकास है, जिसमें स्वयं की जड़ काटी जा रही है। अतः हम इसे अपसभ्यता कहेंगे।
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Question 7:
धरती का वातावरण गरम क्यों हो रहा है? इसमें यूरोप और अमेरिका की क्या भूमिका है? टिप्पणी कीजिए।
Answer:
आज पूरे संसार में ग्लोबल वार्मिंग का खतरा मंडरा रहा है। पूरे विश्व के वैज्ञानिक इस स्थिति से परेशान है। इसके कारण धरती का वातावरण तेज़ी से गरम हो रहा है। हम मनुष्य ने अपनी सुविधाओं के नाम पर जो भी कुछ किया है, वह हमारे लिए खतरनाक सिद्ध हो रहा है। वाहनों, हवाई जहाजों, बिजली बनाने वाले संयंत्रों (प्लांटस), उद्योगों इत्यादि से अंधाधुंध होने वाले गैसीय उत्सर्जन की वजह से कार्बन डायऑक्साइड में वृद्धि हो रही है। इन गतिविधियों से कार्बन डायऑक्साइड, मिथेन, नाइट्रोजन ऑक्साइड इत्यादि ग्रीनहाउस गैसों की मात्रा में बढ़ रही हैं, जिससे इन गैसों का आवरण घना होता जा रहा है। यही आवरण सूर्य की परावर्तित किरणों को रोक रहा है, जिससे धरती के तापमान में बढ़ोतरी हो रही है। ग्लेशियरों की बर्फ बढ़ रहे तापमान से तेज़ी से पिघल रही है। जिससे आने वाले समय में जल संकट खड़ा हो सकता है। जंगलों का बड़ी संख्या में हो रहा कटाव भी इसकी दूसरी सबसे बड़ी वजह है। जंगल कार्बन डायऑक्साइड की मात्रा को प्राकृतिक रूप से नियंत्रित करते हैं, लेकिन इनकी अंधाधुंध कटाई से यह प्राकृतिक नियंत्रक भी नष्ट हो रहे हैं। यदि जल्दी नहीं की गई तो हमारे जीवन पर भी सवालिया निशान उठ खड़ा होगा। इन गैसों के उत्सर्जन में अमेरिका तथा यूरोपीय देशों की भूमिका मुख्य है। वहाँ से सबसे अधिक इन गैसों का उत्सर्जन हो रहा है। वे इस बात स्वीकार नहीं करते हैं।
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Question 1:
क्या आपको भी पर्यावरण की चिंता है? अगर है तो किस प्रकार? अपने शब्दों में लिखिए।
Answer:
हाँ, मुझे भी पर्यारवण की चिंता है। मैं देख रहा हूँ कि आस-पास क्या हाल है। मैं दिल्ली में रहता हूँ और आज यह भारत के सबसे प्रदूषण युक्त शहर में आती है। इसके कारण यहाँ के नागरिकों को साँस संबंधी तथा त्वचा संबंधी बीमारियाँ हो रही हैं। यहाँ पर शुद्ध वायु लेना तो जैसे सपने की बात है। इस कारण लोगों की आयु भी कम हो रही है। मैं सोचता हूँ यदि ऐसा रहा, तो भारत का दिल कहा जाने वाला यह शहर कैसे बचेगा। इसके अतिरिक्त यदि मेरे देश के हर राज्य और शहर का यही हाल रहा, तो हमारी आने वाली पीढ़ियों का क्या होगा। हम उन्हें क्या देंगे। हमें शीघ्र ही कुछ करना पड़ेगा। वरना समय दूर नहीं है। जब मेरा देश प्रदूषण के जहर से त्रस्त हो जाएगा।
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Question 2:
विकास की औद्योगिक सभ्यता उजाड़ की अपसभ्यता है। खाऊ-उजाड़ू सभ्यता के संदर्भ में हो रहे पर्यावरण के विनाश पर प्रकाश डालिए।
Answer:
मनुष्य ने सदैव ही अपने विकास के लिए अनेक कार्य किए हैं। मनुष्य ने विज्ञान के माध्यम से अनेक आविष्कार किए, अनेक ऐसी वस्तुओं का निर्माण किया, जो हमारे लिए सोचना भी संभव नहीं था। मनुष्य ने अपनी इच्छाशक्ति के बल पर अपनी कल्पना को साकार किया। उसने ही औद्योगिक सभ्यता को जन्म दिया है। इसने जहाँ एक ओर हमें प्रगति व उन्नति के पथ में अग्रसर किया है, वहीं दूसरी ओर पर्यावरण का सबसे बड़ा नुकसान किया है। औद्योगिक सभ्यता ने प्रकृति की जीवन शैली को आघात पहुँचाया है। इस आघात से उत्पन्न घाव से उभरने के लिए मनुष्य को शायद ही प्रकृति द्वारा समय दिया जाए। प्रकृति के बिना पृथ्वी में रहने की कल्पना करना ही पूरे शरीर में सिहरन भर देता है। प्रकृति भगवान द्वारा दी गई बहुमूल्य भेंट है। प्रकृति, मनुष्य को सदैव देती रही है और हम याचक की तरह उसके समक्ष भिक्षा का पात्र लेकर खड़े रहे हैं। परन्तु आज स्थिति दूसरी बन गई है। हमने प्रकृति का इतना दोहन कर लिया है कि इसने अपना मैत्री भाव छोड़कर विकरालता को धारण कर लिया है। बढ़ते प्रकृति दोहन से जलीय, थलीय एवं वायुमंडलीय प्रदूषण बढ़ गया है। परन्तु भूमि प्रदूषण की अधिकता देखते ही बनती है। औद्योगिक कचरे के फैलाव के कारण अनेक समस्याओं व बीमारियों को आमंत्रण मिला है। जगह-जगह मानव निर्मित कचरे के ढेर दिखाई देते हैं, जिससे मनुष्य व अन्य प्रकार के प्राणियों के लिए अधिक खतरा मंडरा रहा है। वनों के कटाव से भूमि के कटाव की समस्या और रेगिस्तान के प्रसार की समस्या सामने आई है। वनों के अत्यधिक कटाव ने जंगली जानवरों के अस्तित्व को संकट में डाला है। ऊर्जा के उत्पादन के लिए अचल संपदा का स्थायी क्षय हुआ है। रसायनों के अत्यधिक प्रयोग ने मिट्टी संबंधी प्रदूषण को बढ़ाया है। इससे इसकी उर्वरता पर प्रभाव पड़ा है। इन सभी समस्याओं पर यदि अभी ध्यान नहीं दिया गया, तो आगे चलकर ये सभी समस्याऐं विकरालता की हद को भी पार कर जाएँगी। आज पर्यावरण में बढ़ते प्रदूषण के कारण नित नई बीमारियाँ अपना मुँह फाड़े मनुष्य को काल का ग्रास बनाने के लिए तैयार हैं। एक बीमारी से हम निजात पाते नहीं कि नई बीमारी आ खड़ी होती।
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Question 3:
पर्यावरण को विनाश से बचाने के लिए आप क्या कर सकते हैं? उसे कैसे बचाया जा सकता है? अपने विचार लिखिए।
Answer:
प्रदूषण को रोकने के लिए वायुमंडल को साफ़-सुथरा रखना परमावश्यक है। इस ओर जनता को जागरुक किया जाना चाहिए। बस्ती व नगर के समस्त वर्जित पदार्थों के निष्कासन के लिए सुदूर स्थान पर समुचित व्यवस्था की जानी चाहिए। जो औद्योगिक प्रतिष्ठान शहरों तथा घनी आबादी के बीच में हैं, उन्हें नगरों से दूर स्थानांतरित करने का पूरा प्रबन्ध करना चाहिए। घरों से निकलने वाले दूषित जल को साफ करने के लिए बड़े-बड़े प्लाट लगाने चाहिए। फैक्टिरयों और कारखानों को नदियों से दूर कर देना चाहिए। सौर ऊर्जा को बढ़ावा देना चाहिए। वन संरक्षण तथा वृक्षारोपण को सर्वाधिक प्राथमिकता देनी चाहिए। इस प्रकार प्रदूषण युक्त वातावरण का निर्माण किया जा सकेगा।
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